Wednesday, September 29, 2021

बैंक खातों में मिनिमम बैलेन्स के नाम पर पेनाल्टी # किसका नफा-किसका नुकसान

बैंक खातों में मिनिमम बैलेन्स के नाम पर पेनाल्टी
 # किसका नफा-किसका नुकसान

मेरे एक मित्र बैंक अधिकारी से फोन पर बात हो रही थी । अचानक से दूसरी तरफ से एक महिला की आवाज आई जिससे लग रहा था कि कोई बुजुर्ग महिला है। महिला बैंक अधिकारी से अपने खाते में बैलेन्स की जानकारी माँग रही थी जिसके प्रतिउत्तर में अधिकारी महोदय ने बताया कि आपके खाते में 800 रुपए बचे हैं और आपके खाते में मिनिमम बैलेन्स नहीं रखने से पेनल्टी कट रही है । महिला ने बेबसी में कुछ और पूछा और अधिकारी महोदय ने बताया कि जल्द ही खाते में पैसे डालिये नहीं तो ये बैलेन्स भी ख़त्म हो जाएगा । बुजुर्ग महिला ने कहा कि कहाँ से लाऊँ पैसे, अगर होते तो कम ही क्यूँ होते ।

खैर, महिला तो चली गयी किन्तु मन में यह बात रह रह कर कुरेदती रही और चिंतन के लिए मजबूर हो गया । काफी देर तक बैंक अधिकारी महोदय से इस विषय पर बात होती रही जिसके लिए उन्होने अपना घिसा-पिटा जबाब भी दिया कि बैंक वाले अगर पेनल्टी नहीं लगाएंगे तो खातों के मैंटेनेंस के खर्च और बैंक कर्मियों की तनख्वाह कहाँ से आएगी । उनके इस जबाब ने और सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि आखिर पेनल्टी ऑन मिनिमम बैलेन्स की वजह से सबसे ज्यादा पेनल्टी किसको लगी होगी, और बैंक इस पेनल्टी के माध्यम से किसकी जेब काट रहे हैं ?

जो व्यक्ति धनवान है उसके पास क्या इतने पैसे भी नहीं होंगे कि वो 3000 से 5000 रुपए की राशि अपने बैंक खाते में रखे । ये सोचना भी मुश्किल हो रहा है कि एक साधारण इंसान जो 15000 से 20000 रुपए महीने भी कमाता होगा उसके खाते में 3000 या 5000 रुपए न रहने पायें । बैंक खाते में पेनल्टी के लिए आवश्यकता से कम राशि तो किसी ऐसे व्यक्ति के ही खाते में हो सकती है जिसके पास इतनी भी आय न हो । पेनल्टी के विषय पर एक पहलू ये भी हो सकता है कि पेनल्टी के डर से कुछ लोग बैंक में रुपए जमा करेंगे जो कि उनकी सेविंग को बढ़ावा देगा । लेकिन जिसके पास महीने भर के राशन और खाने भर के ही पैसे आयें तो उनका क्या होगा । उनका तो अक्सर महीने दो महीने में ऐसा हो ही जाएगा जब वो मिनिमम बैलेन्स मैंटेन नही कर पायेंगे और उनका पैसा बैंकों द्वारा ऐसे ही किसी नियम के तहत काट लिया जाएगा।

काफी चिंतन मनन के बाद आखिर यही निष्कर्ष निकला कि पेनल्टी ऑन मिनिमम बैलेन्स के नियम से पेनाल्टी उन्ही लोगों की ज्यादा कटती है जो कि आर्थिक रूप से कमजोर हैं और उनके पास मिनिमम बैलेन्स रखने भर के भी पैसे नहीं जुट पाते होंगे । इस कथन से यह भी कहा जा सकता है कि बैंकों द्वारा ये नियम सिर्फ गरीब तबके के लोगों से जबरदस्ती मोटी रकम एंठने के लिए बनाया गया है । अब कुछ लोग कहेंगे कि मोटी रकम कैसे, भाई पेनल्टी तो बहुत कम लगती है । तो भाई, इस पर यही कहूँगा कि या तो आपकी पेनल्टी नहीं कटी होगी या फिर आप समझना नहीं चाहते हैं ।

भाई प्राइवेट बैंक का तो चलो मान लें कि उनका बिज़नस प्रॉफ़िट कमाने की सोंच से ही शुरू होता है । लेकिन सरकारी बैंकों का क्या ? सरकारी बैंकों को तो प्रॉफ़िट से पहले जनता का हित देखना चाहिए । आखिर सरकार जनता की है तो सरकारी कंपनी जनता की हुई, तो उनका हित तो सर्वोपरि होना चाहिए । उसपर भी ये नियम बना कर आर्थिक रूप से कमजोर और अक्षम लोगों से जबरदस्ती पैसा वसूलने वाली बात हो गयी ना ।

तो आखिर ये आर्थिक रूप से कमजोर लोग बैंक में खाते ही क्यूँ खुलवाते हैं जब इतनी कम राशि भी अपने खाते में नहीं रख सकते । ये बात भी सही है, बैंक मतलब पैसा, और जिसके पास पैसा है वो बैंक जाए, जिसके पास नहीं है वो बैंक का टेंशन क्यूँ बढ़ाए । लेकिन जिसके पास पैसा नही है वो लोग करें भी तो क्या करें । सरकार द्वारा यदि कोई आर्थिक सहायता जैसे विधवा पेंशन, गैस सब्सिडि, वरिष्ठ नागरिक पेंशन या कोई अन्य वित्तीय सहायता जो आम तौर पर लगभग 2000-2500 रुपए तक होती है वो सीधे बैंक खाते में ही आती है उसके लिए बैंक खाता होना जरूरी है । और अगर किसी को 2500 रुपए जीवन गुजर बसर के लिए मिल रहा है तो वो उन पैसों को खाते से बिना निकाले अपना काम कैसे करे। और अगर वो पैसे निकाल ले तो पेनल्टी लग जाती है । अब स्थिति असमंजस की है कि वो लोग करें भी तो क्या करें । लेकिन पता है इससे बढ़कर आश्चर्य की बात तो ये है कि बैंक 2000 रुपए से 250 रुपए काट भी लेती है तो भी उनको 1750 रुपए तो मिल ही रहा है, वो इसी में खुश हैं ।

फिर थोड़ा और चिंतन मंथन किया गया कि भारतीय रिजर्व बैंक क्या कहता है इस मामले में । वैसे तो पैसा से ही बैंक है और बैंक तो पैसे वालों के लिए हैं, उनसे गरीब जनता के फायदे कैसे हो सकते हैं और भारतीय रिजर्व बैंक भी है तो एक बैंक ही ना । खैर काफी खोजबीन से पता चला कि भारतीय रिजर्व बैंक के 1 जुलाई 2015 के परिपत्र से ही इस नियम को लागू किया गया था और उसी परिपत्र का एक संबंधित अंश नीचे दिया गया है:


ओ भाई-साहब, नियम तो यह है कि बैंक किसी के खाते से पेनल्टी काटने से पहले उसको बताएंगे और बताने के बाद कम से कम एक महीने का समय देंगे उसके बाद ही पेनल्टी काटेंगे । किन्तु ऐसा होता कहीं दिखा नहीं । बैंक का अंग्रेजी में सीधे यही मैसेज आता है कि आपके खाते से इतनी राशि काट ली गयी है । कई लोग तो मोबाइल भी नहीं रखते उनके पास तो मैसेज भी नहीं जाता है और कई लोग तो ऐसे हैं जो अंग्रेजी वाले मैसेज का मतलब भी नहीं समझ पाते हैं और वह व्यक्ति जब पैसा निकालने बैंक जाता है तो पता चलता है खाते में पैसे ही नहीं हैं । जो व्यक्ति सोच रहा था कि उसका पैसा बैंक में चौकीदार की सुरक्षा में सुरक्षित है उसी बैंक ने उसकी जेब काट ली । खैर, किसी को इससे क्या करना है । गरीब आदमी किसी का क्या कर लेगा । और शिकायत भी करेगा तो किससे करेगा । नियम तो बना ही है । थोड़ा इधर उधर करके तोड़ मरोड़ कर सभी बैंक अपना फायदा निकाल रहे हैं ।

अरे भाई इतना हल्ला क्यूँ मचा रहे हो ? कितना पैसा काट लिया बैंक ने ? पेनल्टी लगी भी होगी तो थोड़ी सी ही लगी होगी, इस पर इतना भी क्या रोना ? तो अब थोड़ी बात करते हैं कितनी पेनल्टी काटते हैं बैंक वाले । तो भाई साहब मैंने काफी खोजा पर इंटरनेट पर कोई सही आंकड़ा दिखा ही नहीं । कोई इस मुद्दे पर सही से कुछ बोला ही नहीं । खैर कोई बोलता भी क्यूँ? किसी को इससे क्या लेना था । जो बोल सकते हैं उनकी पेनल्टी तो नहीं कटी । उनका बैलेन्स तो लाखों में है, उनको इससे क्या लेना देना है । वो तो एनईएफ़टी और आरटीजीएस पर लगने वाले चार्ज को ख़त्म कराएंगे ना जहाँ उनको पैसे देने पड़ते हैं और उनकी आवाज में दम भी है तभी तो एनईएफ़टी और आरटीजीएस पर ट्रैंज़ैक्शन चार्ज ख़त्म कर दिये गए । खैर कुछ वर्ष पहले एक रिपोर्ट मे ये बात सामने आई थी कि भारतीय स्टेट बैंक ने एक तिमाही में 1700 सौ करोड़ से ज्यादा रुपए का मुनाफा मिनिमम बैलेन्स पर पेनल्टी काट के कमाया था । ये सिर्फ एक बैंक द्वारा एक तिमाही में काटी गयी पेनल्टी थी । देश में बहुत सारे बैंक हैं इतना तो सभी जानते हैं ।

खोजबीन थोड़ी और की गयी और आखिरकार 23 जुलाई 2019 को Financial Express में एक लेख छपा था जिसका शीर्षक था “Banks collect Rs 10,000 crore in minimum balance penalty; PSU banks earn this much इसके अनुसार 2019 के विगत 03 वर्षों में बैंको ने दस हजार करोड़ से ज्यादा की राशि सिर्फ मिनिमम बैलेन्स पर पेनल्टी काट दी । 18 सरकारी बैंको ने छह हजार एक सौ पचपन हजार करोड़ की पेनल्टी काटी जबकी प्राइवेट बैंको द्वारा उसी दौरान तीन हजार पाँच सौ सड़सठ हजार करोड़ रुपए की पेनल्टी काटी गयी । और ये जानकारी उस समय के राज्य वित्त मंत्री श्री अनुराग ठाकुर साहब ने राज्य सभा में इसी विषय के सवाल के प्रतिउत्तर में दिया था । भारत की सबसे बड़ी सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सिर्फ वित्त वर्ष 2017-2018 में 2400 करोड़ से ज्यादा की पेनल्टी बैंक खाते में मिनिमम बैलेन्स नही होने पर काटा था ।

एचडीएफ़सी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, इंडसइंड बैंक आदि प्राइवेट बैंको में मिनिमम बैलेन्स कम से कम दस हजार रुपए होना चाहिए वहीं पर पंजाब नेशनल बैंक, भारतीय स्टेट बैंक आदि सरकारी बैंको में मिनिमम बैलेन्स 2000 से 3000 रुपए तक होना चाहिए । वैसे शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के अनुसार भी मिनिमम बैलेन्स की सीमा अलग अलग तय होती है । खैर भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को पेनाल्टी काटने का अधिकार दिया है और कितना काटना है ये बैंको की मनमानी पर छोड़ दिया है ।

वैसे तो मेरे विचार से पेनल्टी ऑन मिनिमम बैलेन्स का नियम नैतिक रूप से ही गलत है । किन्तु नियम बनाया भी है तो उसका सही से पालन नहीं करवाया गया । पहले जमाने के साहुकारों के चंगुल से गरीब को बचाने के लिए ही बैंक बनाए गए लेकिन ये क्या, फिर से वही साहुकार आ गए गरीबों को लूटने । अन्तर सिर्फ इतना है कि धोती कुर्ता की जगह सूट-बूट टाई पहनते हैं, हिन्दी की जगह अंग्रेजी में बोलते लिखते हैं । गरीब को तब भी लूटा जाता था और गरीब को अब भी लूटा जाता है ।

इन सबके दृष्टिगत यही निष्कर्ष निकलता है कि बैंक गरीबों के लिए तो नहीं हैं और बैंक गरीबों की गाढ़ी कमाई को लूटने के लिए ही पेनल्टी ऑन मिनिमम बैलेन्स जैसे नियम बनाए हैं । खातों में मिनिमम बैलेन्स की 2000-10000 की राशि रखना एक सामान्य इंसान के लिए कोई बड़ी बात नहीं है किन्तु भारत जैसे देश में जहाँ एक बड़ा तबका गरीब है और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करता है उसके लिए हर महीने कम से कम इतनी राशि हमेशा बैंक में जमा रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । और इस नियम के तहत उनकी पेनल्टी आगे भी कटती रहेगी । इस तरह देखा जाए तो मिनिमम बैलेन्स पर पेनल्टी के नियम से गरीब  जनता से जबरदस्ती पैसा वसूला जा रहा है कहना गलत नहीं होगा । और ऐसा नहीं है कि नियम और नीतियाँ बनाने वाले लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं, उन्हे सब पता होता है । शृंखला में जो सबसे नीचे होता है उसी को सारा भार उठाना पड़ता है । जो हुआ सो हुआ, लेकिन अब ये बात सबको समझना चाहिए कि इस मिनिमम बैलेन्स पर पेनल्टी के नियम से गरीबों को जो क्षति पहुँची है, वो अब आगे और न हो । अगर पिछली पेनल्टी वापिस कर सकें तो बड़ी अच्छी बात होगी, लेकिन यदि वो संभव न हो सके तो कम से कम ये नियम अब ख़त्म कर देने चाहिए । इतनी बड़ी पनल्टी की राशि यही दर्शाती है कि भारत में अभी बहुत सारे लोग आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के हैं और हमारी नीतियाँ इस वर्ग के उत्थान के लिए होना चाहिए न कि उन्हे और गरीब करने की । इतनी बड़ी आबादी के लोगों को नजरअंदाज किया जाना कदाचित उचित नहीं होगा लेकिन इस तरह के नियमों से तो यही लगता है कि गरीबों को ही गरीब बनाया जा रहा है । क्या यह देश उनका नहीं है ? जिस भारत में आधी से अधिक आबादी सामान्य रूप से गरीब है उस भारत में किसके लिए प्रगति हो रही है और अक्सर हम ये सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि किसकी प्रगति किसका देश

28 comments:

  1. Total impact on financial backward consumer

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    1. That's the point. Should we forcibly earn from financially weaker section?

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  2. Those consumers who have more than one bank accounts and the unused one would eventually get NPA and account would be terminated

    My 3 nos unused account has been terminated with minimum balance charges

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  3. बिल्कुल सही बात है भैया

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  4. शानदार लेखन , सच को इतनी बाखूबी से लिखने के लिए शुक्रिया ।

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    1. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद

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  5. Rightly said. Jan Dhan Accounts opened by the Govt. are benefiting to the bank's only

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  6. विचारणीय और विस्तृत लेख 🤘❤️ बहुत सुंदर

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  7. Exactly right Arun ji
    Poor people always suffer

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  8. सहमत हूँ भैया🙏

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  9. You really raised a very important agenda..and well explained too.....

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  10. Nice Article with real genuine problem.

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